10 February 2012

Mahabhoj

मन्नू भंडारी द्वारा लिखित "महाभोज" पढ़ रहा हूँ। बहुत मोटी किताब नहीं है। कहानी का विषय है राजनीति। सारांश कुछ ऐसी है। किसी एक छोटे से गाँव में एक हरिजन समाजसेवक का लाश मिलने पर सरकार और विपक्षी नेता, दोनों इस "मौके" का फायदा उठाना चाहते हैं। कारण है कि इस घटना के कुछ ही दिनों बाद चुनाव है। वैसे तो है मामूली चुनाव लेकिन विपक्षी नेता इसी से अपना "नव निर्माण" करना चाहते हैं, और ये भी स्वाभाविक है की सरकारी दल, जिसमे कुछ नेता असंतुष्ट हैं,  इतनी आसानी से हारने वाली नहीं है। अब तक तो आधी ही पढ़ी है, लेकिन इतना तो समझ में आ ही गया है कि चुनाव में कोई भी जीते, असली में हारने वाले तो गाँव वाले ही हैं। इसलिए कह रहा हूँ कि कहानी बहुत ही सहज और स्वाभाविक रूप में लिखी गयी है। विभिन्न नेताओं का ऐसा सहज चरित्रांकन, बिना एक शब्द व्यर्थ किये, बहुत अच्छा लगा। ऐसा नहीं लगता है कि ये कोई कहानी है, बल्कि राजनीती के भीतरी एवं बाहरी चालबाज़ी का आँखों देखा हाल है।
खरीदिये और पढ़िए!

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